सीबीएसई कक्षा 12 की बोर्ड परीक्षा
रद्द करने के केंद्र सरकार के पिछले हफ्ते हुए फैसले के बाद, राजस्थान सरकार ने
भी 2 जून को ऐलान किया औऱ कक्षा 10 और 12 की राज्य बोर्ड परीक्षाएं रद्द कर
दीं। बोर्ड परीक्षाएं रद्द करने की घोषणा करते हुए राजस्थान के शिक्षा मंत्री
गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा कि ये कदम कोविड-19 महामारी के मद्देनजर छात्रों को
सुरक्षित रखने के लिए उठाया गया है। अब नया शैक्षणिक सत्र 7 जून से शुरू हो
चुका है और छात्रों के मूल्यांकन के लिए एक वैकल्पिक मूल्यांकन व्यवस्था जल्दी ही
घोषित की जाएगी। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी कक्षा 1 से 6 और कक्षा 8, 9 व 11 के छात्रों को भी
बिना परीक्षा लिए सामूहिक रूप से अगली कक्षा में क्रमोन्नत करने की घोषणा कर दी
है। हरियाणा, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड सहित अन्य राज्य भी अपनी-अपनी बोर्ड
परीक्षाएं रद्द करने की घोषणा कर चुके हैं।
परीक्षाएं रद्द करने के फैसले पर मिली-जुली
प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं। एक तरफ जहां कई शिक्षकों और छात्रों ने इसे राहत
भर फैसला बताया है क्योंकि इससे बच्चों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के बारे में उठ
रही चिंताएं दूर हुई हैं तो दूसरी ओर ये आशंकाएं भी उठ खड़ी हुई हैं कि क्या इस
फैसले से उन अनिश्चितताओं को दूर किया जा सकता है जिनका बुरा असर महामारी की
शुरुआत के बाद से शिक्षा प्रणाली पर हुआ है। इस बात को लेकर भी चिंता है कि अब
छात्रों के शैक्षणिक प्रदर्शन का मूल्यांकन कैसे किया जाएगा। उन छात्रों का क्या, जिन्होंने अपना
पिछला प्रदर्शन सुधारने के लिए कड़ी मेहनत की थी? क्या प्राप्तांक प्रतिशत में हुई
विसंगतियां, लाखों छात्रों के भविष्य की संभावनाओं को प्रभावित करेंगी?
मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और एचओडी
मनोचिकित्सा, ईएसआई मॉडल अस्पताल, डॉ अखिलेश जैन का कहना है कि, “24 मार्च 2020 से स्कूल बंद हैं
और ऑनलाइन कक्षाओं ने देश में क्लासरूम पढ़ाई की जगह ले ली है। हम ऐसा पहली बार
अनुभव कर रहे हैं और बच्चों एवं किशोरों पर इसके प्रभाव को अभी पूरी तरह से समझा
नहीं जा सका है। सीखना और मनोरंजन लगभग पूरी तरह टेक्नोलॉजी पर निर्भर हो गया है
और साथ ही सामाजिक संपर्क, बाहरी गतिविधियां लगभग बंद सी हो गई हैं। दैनिक दिनचर्या बाधित हो
गई है और घर में कैद रहने से मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ने की संभावना है।
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, मानसिक स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं में से 50 प्रतिशत, 14 साल की उम्र में ही
सामने आ सकती हैं जो अक्सर अनदेखी और अनुपचारित रह जाती है। ये आंकड़ा और भी अधिक
चिंताजनक हो जाता है क्योंकि भारत में करीब 25 करोड़ 30 लाख किशोर आबादी है जो दुनिया में
सबसे अधिक है।
ग्रामीण भारत में, ये मसला और भी
गंभीर हो सकता है क्योंकि गांवों में बच्चों के पास टेक्नोलॉजी पहुंची नहीं है और
कईयों को तो उचित पोषण भी नहीं मिल रहा है। ऐसे में उनकी सीखने की प्रक्रिया और
विकास दोनों बुरी तरह से प्रभावित हो सकता है। कक्षा 12 की परीक्षाओं को
रद्द करने का निर्णय हालांकि तार्किक रूप से सही है किंतु ये है अल्पावधि तक चलने
वाला समाधान है। यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में
छात्र-छात्राओं को बिना किसी रुकावट सीखने में मदद कैसे मिलेगी? हमारी शिक्षा
प्रणाली इस महामारी के अनुकूल कैसे बनेगी ? क्या हम छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य
से जुड़ी समस्याएं और उनकी चिंताओं को दूर करने के लिए तैयार हैं? हमें एक ऐसी
भरोसेमंद कार्यप्रणाली की आवश्यकता है जो एक छात्र का सही आकलन कर सके।
पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की
सीनियर स्टेट प्रोग्राम मैनेजर दिव्या संथानम का कहना है कि, “जब हम परीक्षा रद्द
होने से छात्रों पर पड़ने वाले असर की बात करते हैं, तो हम केवल शहरी छात्रों के बारे में
ही सोचते हैं। हम भूल जाते हैं कि लाखों ग्रामीण छात्र पहले ही महामारी से
प्रभावित हो चुके हैं। कई छात्र इसलिए पढ़ाई छोड़ चुके हैं क्योंकि वे उनके पास
डिजिटल सुविधाएं नही हैं और कई के लिए तो 12वीं तक पढ़ाई करना भी नामुमकिन
है।"
युवाओं की समस्याओं को सुनने और
उन्हें दूर करने के लिए उन तक पहुंचने की जरूरत बताते हुए दिव्या कहती हैं कि “छात्रों से उन
सवालों के बारे में प्रतिक्रिया जानना आवश्यकत है जो उन्हें वर्तमान परिस्थितियों
और भविष्य के बारे में परेशान कर रहे हैं। इस तरह, हम पारदर्शी नीतियों को लागू करने और
छात्रों के साथ संवाद शुरू करने की फौरी जरूरत को पूरा कर सकते हैं। विशेषज्ञों को ऐसी रणनीति और
रोडमैप तैयार करना होगा ताकि छात्रों में ये विश्वास पैदा हो कि उनका शैक्षणिक भविष्य
सुरक्षित है। आगे अब परीक्षा के लिए पेन और पेपर की आवश्यकता नहीं हो सकती है, लेकिन हमें अभी भी
इस बारे में एक योजना की आवश्यकता है कि छात्र आगे चलकर महामारी से कैसे निपटेंगे।
आज के युवा ही आने वाले कल का नेतृत्व हैं, जो सामाज की दशा और दिशा तय करेंगे, और इसलिए उन्हें अपनी
चिंताओं से निपटने के लिए सुसज्जित करना चाहिए। हालांकि इस चुनौती से प्रभावी ढंग
से निपटने के लिए, हमें पहले इसे समझना और स्वीकार करना होगा। ”