जयपुर, दिसंबर 23, 2021.
शहर के नारायणा
मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल में एक 90 वर्षीय व्यक्ति की हाई-रिस्क बाइपास सर्जरी
सफलतापूर्वक की गई, जो अपना 91वां जन्मदिन मनाने से कुछ ही
दूर है। डॉ. सी.पी. श्रीवास्तव (डायरेक्टर एवं विभागाध्यक्ष - कार्डियक सर्जरी)
द्वारा की गई यह सर्जरी राजस्थान में अपनी तरह के पहले कुछ केसों में से एक है, जिसमें इतनी ज्यादा उम्र में किसी व्यक्ति की सफलतापूर्वक
हार्ट सर्जरी की गई है। रोगी को एक बड़ा दिल का दौरा पड़ा था जिसके पश्चात् उनकी
एंजियोग्राफी की गई थी। एंजियोग्राफी में उनके हृदय की तीनों धमनियों में ब्लॉकेज
आया। उनके हृदय की स्थिति ऐसी थी कि एंजियोप्लास्टी भी की जाती तो कारगर नहीं
रहती। ऐसे में मरीज की जान बचाने के लिए एवं एक बेहतर जीवन देने के लिए डॉ. सी.पी.
श्रीवास्तव द्वारा बाईपास सर्जरी का जोखिम लिया गया जो सफल रहा।
नारायणा मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल, जयपुर के कार्डियक सर्जरी विभाग के डायरेक्टर एवं
विभागाध्यक्ष डॉ. सी.पी. श्रीवास्तव ने बताया कि, चिकित्सा क्षेत्र में 75 साल की उम्र के बाद ही बाईपास
सर्जरी करना जोखिमपूर्ण माना जाता है। ऐसे ऑपरेशन में ज्यादा उम्र के कारण मरीज के
जल्दी स्वस्थ होने और जीवित रह पाने की संभावना भी कम हो जाती है। हमें खुशी है कि
हम इस अत्याधिक जोखिम भरे ऑपरेशन की सफलतापूर्वक कर पायें और मरीज की जिन्दगी
बेहतर कर पायें। इस केस में एनेस्थीसिया एवं क्रिटिकल केयर टीम का भी महत्वपूर्ण
योगदान रहा जिन्होने सर्जरी के दौरान एवं पश्चात् भी अपना पूर्ण सहयोग दिया।
इसी तरह का केस
2017 में भी डॉ सी.पी. श्रीवास्तव द्वारा सफलतापूर्वक किया गया था, जिसमें उन्होंने एक मरीज की सफलतापूर्वक बाईपास सर्जरी की
थी, जो अपना 90 वां जन्मदिन मनाने से कुछ ही
दूर था।
नारायणा मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल, जयपुर के जोनल क्लिनिकल डायरेक्टर डॉ. माला ऐरन एवं
फैसिलिटी डायरेक्टर बलविंदर सिंह वालिया ने बतया कि, मरीज की उम्र, रोगग्रस्त धमनियां और कमजोर फेफड़ों ने इस ऑपरेशन के जोखिम
को और भी बढ़ा दिया था। हाई रिस्क कार्डियक सर्जरी में लंबा अनुभव, प्रशिक्षित टीम एवं नवीनतम तकनीकों के कारण ही हम सभी
जोखिमों को मैनेज कर पायें और मरीज को पूरी तरह से ठीक कर सके। हम समस्त कार्डियक
सर्जरी एवं क्रिटिकल केयर टीम को बधाई देना चाहेगें जिनके अथक प्रयासों एवं 24/7
मॉनिटरिंग ने मरीज को एक नया जीवनदान दिया। ऐसे मामलें गंभीर हृदय रोग से जूझ रहे
80 व 90 दशक के मरीजों के लिए एक आशा की किरण है।