देवेंद्र राज अंकुर के निर्देशन में नाटक ‘लावारिस नहीं, मेरी माँ है’ और ‘जोगिया राग’ का मंचन 20 नवंबर को जयपुर में होगा

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जयपुर, नवंबर 18, 2024.

पारस बेला न्यास और अनुष्ठान नाट्य समूह, जयपुर में एक नाट्य संध्या का आयोजन करने जा रहा है। इस नाट्य संध्या में दो नाटकों लावारिस नहीं, मेरी माँ हैऔर जोगिया रागका मंचन किया जाएगा। इन नाटकों का प्रदर्शन 20 नवंबर को शाम छह बजे जवाहर कला केन्द्र में होगा। दोनों नाटकों का निर्देशन प्रख्यात रंगकर्मी और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पूर्व निदेशक प्रो. देवेंद्र राज अंकुर ने किया है।

ये दोनों नाटक नाट्य प्रदर्शन विधा कहानी का रंगमंचकी शैली में मंचित किए जाएँगे। कहानी का रंगमंचको शुरू करने और विकसित करने का श्रेय भी प्रो. देवेंद्र राज अंकुर को जाता है।

क्या है कहानी का रंगमंच

प्रो. अंकुर के अनुसार आमतौर पर जब हम किसी कहानी या उपन्यास का मंचन करते हैं, तो हम या तो उस कहानी का नया आलेख तैयार करते हैं या फिर उसका नाट्य रूपांतरण करते हैं। लेकिन कहानी का रंगमंचमें मूल कहानी ही उसका आलेख होती है वही उसका परफॉरमेंस टेक्स्टकहलाती है।

 

ये भी एक सुखद संयोग है कि कहानी का रंगमंचजैसा सफल रंग प्रयोग इस साल अपने 50वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है। इसलिए 20 नवंबर को होने जा रही इस नाट्य संध्या को रंग अंकुरका नाम दिया गया है।  रंग अंकुर के तहत पूर्व में इन दोनों कहानियों का मंचन  मुंबई और दिल्ली में किया जा चुका है। अपने तीसरे पड़ाव में ये नाटक जयपुर में मंचित होने जा रहे हैं। मंच पर मुख्य भूमिका में जानी मानी रंगकर्मी और अभिनेत्री निधि मिश्रा भी नज़र आयेंगी।

 

नाटकों की कहानी

 

 आज संयुक्त परिवार बड़ी तेज़ी से एकल परिवार में बदलते जा रहे हैं। इस आधुनिक समाज के बदलाव की दौड़ में बूढ़े माँ -बाप कहीं पीछे रह गये हैं। डॉ. अनिल कुमार पाठक की कहानी लावारिस नहीं, मेरी माँ हैएक  ऐसी ही माँ की कहानी है जिसके पति की मृत्यु के बाद उसके बच्चों ने उसे निराश्रित कर दिया है। इस बेसहारा माँ को संबल तब मिलता है जब उसकी मुलाक़ात एक सरकारी अधिकारी से होती है। कहानी अपने और पराये के अंतर को समझने के लिए पारिवारिक रिश्तों की बजाय मानवीय संवेदनाओं को अधिक महत्व देने की बात को रेखांकित करती है। 

 

दूसरा नाटक विजय पंडित की लिखी कहानी जोगिया रागहै, जहां सावित्री पिछले 15 साल से अपने पति के घर लौटने का इंतज़ार कर रही है। सावित्री का पति शादी की पहली ही रात को उसे छोड़कर जोगी बन जाता है। कहानी एक स्त्री के प्रेम, उम्मीद और जिजीविषा की बानी है।