जयपुर, 21 जनवरी, 2022.
कपड़ा बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल होने वाले धागे के दामों में 70 फीसदी तक बढ़ोतरी होने से टेक्सटाइल उद्योग पर असर पड़ रहा है। हालांकि कोरोना काल के हालात सुधरने से मांग लगातार बनी हुई है, लेकिन यहां के उत्पाद की लागत वैश्विक बाजार में मिलने वाली कीमतों के मुकाबले ज्यादा है। इसके अलावा ब्याज पुनर्भरण पर मिलने वाली 5 प्रतिशत सबसिडी को भी सरकार ने विगत करीब 01 अक्टूबर, 2021से बन्द कर रखा है। जब तक कच्चे माल के निर्यात के लिए भारत सरकार की नीति में कुछ गंभीर बदलाव नहीं होते हैं, तब तक मूल्य वर्धित कपड़ा उत्पादों का भविष्य काला ही नजर आ रहा है।
इस बारे में गारमेंट एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विमल शाह ने बताया कि यदि आंकड़ों पर गौर किया जाए तो क्योंकि बांग्लादेश सहित अन्य कई देशों में भारत की अपेक्षा कम कीमत पर तैयार माल मिलने से कई देशों के व्यापारियों द्वारा वहां पर ऑर्डर दिए जा रहे हैं। धागों व कच्चे माल की कीमत बढ़ने से राजस्थान के टेक्सटाइल उद्योगों पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। वास्तव में, बांग्लादेश चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा रेडीमेड परिधान निर्यातक है, जबकि बेहतर बुनियादी ढांचे के साथ भारत बड़े पैमाने पर कपड़ा निर्यात के अवसर का लाभ क्यों नहीं उठा सका? इसका मुख्य कारण भारत में श्रम लागत का अधिक होना और सरकार की नीतियों में बदलाव का नहीं होना।
कपड़े व्यापार से जुड़े उद्योगपतियों का कहना है कि कच्चे माल के दाम 50 फीसदी बढ़ने से काफी परेशानी आ रही है, क्योंकि तैयार माल महंगा होने के कारण दूसरे देशों में एक्सपोर्ट पर काफी असर पड़ा है। तैयार माल के दाम महंगे होने के कारण दूसरे देशों से ऑर्डर में भी कमी आई है।
हर सप्ताह धागों के दाम बढ़ने से ऑर्डर पूरे करने में नुकसान उठाना पड़ रहा है, जबकि बांग्लादेश सहित अन्य देशों में धागों की कीमत कम होने के कारण विदेशी व्यापारियों द्वारा वहां पर ऑर्डर दिए जा रहे हैं। कपड़ा उद्योगों को नुकसान से बचाने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे और धागों एवं कच्चे माल के दाम निर्धारित करने होंगे, ताकि उत्पादन लागत ज्यादा न आए।
इस बारे में एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के सेक्रेटरी श्री आशीष आहूजा ने बताया कि चौंकाने वाली बात है कि आज से 14 साल पहले यानी 2007 में, बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति जीडीपी भारत की तुलना में आधी थी। एक दशक से भी कम समय में, हमारे पड़ोसी देश की प्रति व्यक्ति जीडीपी हमारी तुलना में अधिक है। इसलिए वहां की स्पीनिंग मिल्स का विस्तार परवान पर हैं और वे अधिक यार्न का निर्माण कर कपड़े का निर्यात करेंगी तो इसका घरेलू बाजार में काफी बुरा असर पड़ना अवश्यम्भावी है। साथ ही वे कॉटन का इम्पोर्ट करेंगी इसलिए भारत को रॉ मैटैरियल (कॉटन) के निर्यात पर अंकुश लगाने की नीति बनानी चाहिए।