पार्किन्संस अधिकतर बुजुर्गों में
देखा जाने वाला एक न्यूरोलॉजिकल रोग है, आम तौर पर
इसके लक्षणों को बढ़ती उम्र का एक हिस्सा मानकर स्वीकार कर लिया जाता है,
लेकिन
इस प्रक्रिया में बहुत लोग यह भूल जाते हैं कि पार्किन्संस धीरे धीरे जीवन में
दस्तक देता है,
इसके
शुरुआती लक्षण नजर आते ही इसका इलाज शुरू कर देना चाहिए नहीं तो समस्या गंभीर हो
सकती है। साथ ही देखा गया है कि कोविड महामारी के दौर में भी पार्किन्संस के
मरीजों को बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। ऐसे में किस तरह की सावधानियों का
पालन करना आवश्यक है, इस पर व्यापक चर्चा कर रहे
हैं नारायणा मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल, जयपुर के
एक्सपर्ट विशेषज्ञ –
पार्किन्संस रोग के बारे में
बताते हुए डॉ.
मधुपर्णा पॉल,
कंसलटेंट-न्यूरोलॉजी,
नारायणा
मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल, जयपुर कहतीं
हैं पार्किन्संस रोग प्रत्यक्ष रूप से शरीर में या हाथ पैरों में लगातार कम्पन व
असंतुलन की स्थिति है। डोपामीन मस्तिष्क से निकलने वाला एक ऐसा हार्मोन है जिससे
शरीर की बहुत सी क्रियाएं संचालित होंतीं हैं, कुछ
स्थितियों में डोपामीन का निकलना कम हो जाता है जिसके कारण ये क्रियाएं धीमी हो
जातीं हैं और शरीर में एक अजीब से कम्पन की स्थिति बन जाती है,
और
रोग के गंभीर होते होते इसके लक्षण और भी व्यापक होते जाते हैं। आम तौर पर
पार्किन्संस बुजुर्गों में होता है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि यह युवाओं में होता
ही नहीं। इसे यंग ऑनसेट पार्किन्संस कहते हैं जो बहुत रेयर है और इसके जेनेटिक या
पर्यावरणीय कारण हो सकते हैं।
पार्किन्संस के इलाज व कोविड के
सन्दर्भ में पार्किन्संस पर व्यापक चर्चा कर रहे हैं डॉ.
पृथ्वी गिरी,
कंसलटेंट-न्यूरोलॉजी,
नारायणा
मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल, जयपुर सबसे
पहले लक्षणों के आधार पर समझें कि पार्किन्संस का कम्पन आम कम्पन से अलग होता है।
इसके तहत व्यक्ति को रेस्टिंग मोड में यानी जब वह कोई काम नहीं कर रहा होता है तब
उसमें यह कम्पन नजर आता है, लेकिन कोई
काम करते वक्त वह कम्पन गायब हो जाता है। इसलिए इस प्रमुख लक्षण को पहचान कर
डॉक्टर से तुरंत परामर्श लें।
·
इसके अलावा व्यक्ति को चलने में
दिक्कत होती है,
वह
चलते चलते अचानक रुक जाता है, मुड़ने व
कोई लक्ष्य क्रॉस करने में बाधा आती है।
·
दैनिक जीवन की प्रक्रिया धीमी होने
लगती है। कोई व्यक्ति पहले किसी एक काम को करने में 10 मिनट
लेता था,
लेकिन
अब 20
मिनट
फिर 30
मिनट
ले रहा है।
·
व्यक्ति का लेख या हैण्डराइटिंग
छोटी हो जाती है।
डॉ.
पृथ्वी गिरी बताते
हैं कि,
कुछ
प्रकार की दवाएं भी पार्किन्संस की समस्या को उत्पन्न कर सकतीं हैं,
इस
तरह का पार्किन्संस सामान्य पार्किन्संस से ज्यादा खतरनाक होता है। जो व्यक्ति
मानसिक समस्या,
पेट
दर्द व सरदर्द की दवाएं ले रहा हो, और उसे यदि
अपने दैनिक जीवन में धीमापन, शरीर में
जकड़न,
कम्पन
आदि महसूस हो तो तुरंत डॉक्टर से परामर्श ले, क्योंकि
संभवतः ये ड्रग इन्ड्यूज्ड पार्किन्संस के लक्ष्ण हो सकते हैं। पार्किन्संस का
निदान और इलाज दोनों ही आसानी से उपलब्ध हैं। सामान्यतः पहले एक से पांच वर्ष में
दवाएं अच्छी तरह काम करतीं हैं, अगले 5
वर्ष
में दवाओं का असर धीरे धीरे कम व इनके साइड इ़फेक्ट आना शुरू हो जाते हैं,
फिर
अगले 5
साल
में व्यक्ति की दूसरों पर निर्भरता बढ़ जाती है। और यही पार्किन्संस का सबसे बड़ा डर
माना जाता है। लेकिन आज के आधुनिक चिकित्सा युग में इस एडवांस अवस्था के लिए कई
उपकरण मौजूद हैं जिनसे व्यक्ति अपना जीवन बिता सकता है।
डॉ. पृथ्वी गिरी बताते
हैं कि,
पार्किन्संस
की दवाएं मरीज़ के लिए एक प्रकार से मोटर गाड़ी में ईंधन की तरह काम करतीं हैं,
जब
तक व्यक्ति इसका सेवन करता है तब तक उसका जीवन सही चलता रहता है,
दवाएं
उपलब्ध नहीं होने पर उसका एक प्रकार से यही ईंधन खत्म होने लगता है,
वह
शून्य की अवस्था में आ जाता है। व्यक्ति के सारे क्रियाकलाप बंद हो जाते हैं,
और
वह निष्क्रिय होकर बिस्तर पर आ जाता है। ऐसे में कोविड महामारी के दौर को देखते
हुए रोगी के केयर टेकर इस बात पर अवश्य ध्यान दें, और
उनकी दवाओं का स्टॉक पूरा रखें। दवाओं के हर सप्ताह के अनुसार स्टॉक जोड़ लें। साथ
ही तनाव के कारण भी पार्किन्संस के लक्षण बढ़ सकते हैं इसलिए अभी के दौर में उनका
अतिरिक्त ख्याल रखें। परिवेश को तनावमुक्त बनाकर रखें और स्वस्थ जीवनशैली बनाये
रखने में सहयोग करें।