जयपुर,
जून
2025.
टाटा ट्रस्ट्स ने समाज में लंबे समय से चली आ रही
सोच को चुनौती देते हुए मासिक धर्म को लेकर एक अनूठा और साहसिक कैंपेन शुरू किया
है, जिसका उद्देश्य भारत में
पीरियड्स को लेकर सोच और समझ को बदलना है। भारत में हर महीने लगभग 35.5 करोड़ महिलाएं मासिक धर्म से
गुजरती हैं, लेकिन आज भी इस विषय पर खुलकर
बात नहीं होती। इसे अब भी शर्म, अपवित्रता और पारंपरिक मान्यताओं से जोड़कर देखा जाता
है, जिनमें यह माना जाता है कि मासिक
धर्म केवल शादी या मातृत्व के लिए तैयार होने का संकेत है। हैरानी की बात यह है कि
71% लड़कियों को अपने पहले पीरियड से पहले इस बारे में कोई जानकारी नहीं होती।
इस चुप्पी ने मासिक धर्म को लेकर कई भ्रम और डर खड़े किए हैं। टाटा ट्रस्ट्स का यह
नया कैंपेन इस सोच को बदलते हुए यह संदेश देता है कि मासिक धर्म एक सामान्य और
स्वस्थ शारीरिक प्रक्रिया है – यह अच्छा स्वास्थ्य और एक सक्रिय जैविक प्रणाली का
संकेत है, न कि शर्म या सामाजिक दबाव का
विषय।
यह अभियान झारखंड, उत्तर प्रदेश और गुजरात के ग्रामीण इलाकों में की गई
गहन एथनोग्राफिक रिसर्च पर आधारित है। यह सात राज्यों में सामाजिक और व्यवहार
परिवर्तन संचार (एसबीसीसी), उद्देश्यपूर्ण शॉर्ट फिल्मों और
ज़मीनी काम के जरिए लोगों में मासिक धर्म को लेकर समझ, अनुभव और संवाद के तरीकों को बदलने की कोशिश कर रहा
है। इस पहल की व्यापकता को देखते हुए इसकी डिजिटल उपस्थिति भी मजबूत है।
अध्ययन में यह बात सामने आई कि मासिक धर्म के दौरान
महिलाएं साफ-सफाई और स्वास्थ्य संबंधी आदतों को अपनाने में कई तरह की सामाजिक
बाधाओं का सामना करती हैं। माताएं इस विषय पर बात करने से डरती हैं कि कहीं उनकी
बेटियों को शादी के लिए तैयार न मान लिया जाए – यही चिंता आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं
ने भी जाहिर की। पुरुषों को मासिक धर्म के बारे में बहुत कम जानकारी होती है और वे
इसे आमतौर पर घर के कामकाज में रुकावट के रूप में देखते हैं, जैसे कि खाना बनाना। लेकिन जब उन्हें सही जानकारी
दी गई, तो उन्होंने समर्थन भी दिखाया –
जैसे अपनी पत्नियों के लिए सैनिटरी पैड लाना या ज़रूरत पड़ने पर डॉक्टर के पास ले
जाना।
शोधकर्ताओं, जमीनी कार्यकर्ताओं और रचनात्मक साझेदारों की टीम
द्वारा तैयार यह कैंपेन लड़कियों को यह भरोसा देता है कि पहले मासिक धर्म के बाद
भी वे बच्चे बनी रह सकती हैं। साथ ही यह महिलाओं को आत्मविश्वास और जानकारी के साथ
इस प्रक्रिया को अपनाने की प्रेरणा देता है – ताकि मासिक धर्म को लेकर शर्म, डर या झिझक से मुक्ति मिल सके।
दिव्यांग वाघेला, प्रमुख – जल, स्वच्छता और स्वास्थ्य (वॉश), टाटा ट्रस्ट्स ने कहा, "पानी और निजी स्थान की कमी के
कारण लड़कियों को मासिक धर्म के दौरान नहाने, पैड बदलने या उसका सही ढंग से निस्तारण करने में
कठिनाई होती है। इससे उनकी सुरक्षा और गरिमा पर असर पड़ता है। बुनियादी सुविधाओं
और आत्मनिर्णय की कमी इस स्थिति को और जटिल बना देती है। मासिक स्वास्थ्य और
स्वच्छता के क्षेत्र में टाटा ट्रस्ट्स के अनुभव और यह समझते हुए कि इस विषय से
जुड़ी भ्रांतियाँ कितनी गहराई से समाज में जमी हुई हैं, हम इन बाधाओं को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं।
हमारा उद्देश्य है कि लड़कियाँ मासिक धर्म को एक सामान्य स्वास्थ्य प्रक्रिया के
रूप में स्वीकार करें, न कि कोई ऐसी चीज़ जिसे छिपाया
जाए या जिससे डर हो।"
इन्हीं अनुभवों और समझ ने टाटा ट्रस्ट्स के इस
कैंपेन की नींव रखी है, जो एक नई सोच और बदलाव का संदेश
लेकर आया है—कि मासिक धर्म को सिर्फ यौन परिपक्वता या शादी से जोड़कर नहीं देखा
जाना चाहिए, बल्कि यह स्वास्थ्य का एक
सामान्य संकेत है। इस कैंपेन की खास बात है एक दिलचस्प और यादगार जिंगल – "महीना आ गया"
(यहाँ ‘महीना’ का अर्थ है – मासिक
धर्म, यानी “मुझे
पीरियड्स आ गए
हैं”)। यह
जिंगल एक पुल
का
काम
करता
है
जो
रोज़मर्रा की ज़िंदगी के दृश्यों को दर्शाता है, जैसे पेट दर्द, थकान या मूड बदलना – जिन्हें पुरुष और महिलाएं समान
रूप से सिर्फ स्वास्थ्य के लक्षण मानते हैं, कोई और संकेत नहीं।
इस तरह की बातचीत को सहज, सम्मानजनक और हल्के-फुल्के अंदाज़ में दिखाकर यह
कैंपेन मासिक धर्म से जुड़ी शर्म को मिटाने और परिवारों में सहानुभूति से भरे
संवाद को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा है।
दीपशिखा सुरेंद्रन, प्रमुख – ब्रांड और मार्केटिंग
कम्यूनिकेशंस, टाटा ट्रस्ट्स ने कहा, "इस सामाजिक व्यवहार परिवर्तन
अभियान के माध्यम से, जिसमें ज़मीनी काम और जागरूकता
फिल्मों को जोड़ा गया है, हम समुदायों को यह समझाने का
प्रयास कर रहे हैं कि मासिक धर्म स्वास्थ्य का संकेत है, न कि यौन परिपक्वता से जुड़ा कोई मिथक। ‘महीना आ
गया’ सिर्फ कैलेंडर का पन्ना पलटने जैसा नहीं है—यह एक प्रतीकात्मक संदेश है, जो परिवारों से कहता है कि मासिक धर्म को नए नज़रिए
से देखें। हमारी आशा है कि यह पहल मासिक धर्म को लेकर समझ और समर्थन की एक नई
पीढ़ी और संस्कृति की शुरुआत करेगी।”
मुख्य फिल्म के साथ कुछ छोटी लेकिन भावनात्मक रूप
से असरदार फिल्में भी जुड़ी हैं, जो मासिक धर्म को लेकर समाज में
फैली आम धारणाओं को बदलने के उद्देश्य से खासतौर पर तैयार की गई हैं। एक फिल्म में, एक माँ अपनी बेटी को पहली बार
मासिक धर्म आने पर प्यार से समझाती है कि यह सिर्फ शरीर की एक सामान्य प्रक्रिया
है – यह न तो शादी के लिए तैयार होने का संकेत है और न ही कोई डरने या शर्माने की
बात।
एक दूसरी फिल्म में, एक पति चुपचाप अपनी पत्नी की
ज़रूरतों का ख्याल रखता है, क्योंकि मासिक धर्म केवल महिलाओं की ही नहीं, परिवार की भी जिम्मेदारी है। एक
और फिल्म में, एक सास अपनी बहू को आराम करने और पौष्टिक खाना खाने की सलाह देती है, और सहजता से कहती है, “यह तो बस सेहत का एक संकेत है।”
ये कहानियाँ असल ज़िंदगी के माहौल में गर्मजोशी और
सच्चाई के साथ पेश की गई हैं, जो डर की भावना को सहजता से बदल देती हैं और शर्म
को विज्ञान से जोड़ती हैं।
यह सुनिश्चित करने के लिए कि यह संदेश समाज के हर
हिस्से तक पहुँचे, एक विशेष फिल्म आशा दीदियों और अन्य स्वास्थ्य
कार्यकर्ताओं के लिए भी बनाई गई है, जो समुदाय और स्वास्थ्य सेवा के बीच सेतु का काम
करती हैं।
क्रिएटिव डायरेक्टर केगन पिंटो ने कहा, "हम लोगों से सोच में कोई
बड़ा या जबरन बदलाव नहीं मांग रहे। हम तो बस यही कह रहे हैं कि मासिक धर्म भी एक
साधारण ‘लक्षण’ है – जैसे बाल झड़ना। इसी बात को दिखाने के लिए हमने एक
हल्की-फुल्की, सरल फिल्म बनाई है, जिसे
असली आंगनों और घरों में शूट किया गया है। इसमें एक दमदार और यादगार गीत भी है, जो
भारतीय पॉप संस्कृति की शैली में है और एक सीधा-सा लेकिन अहम संदेश देता है – 'महीने
को सिर्फ सेहत से जोड़ो।"