25 नवंबर, 2019: 44 साल के राजेश लेपचा (मरीज) को गंभीर निमोनिया और एआरडीएस के कारण सांस लेने में मुश्किल हो रही थी। वेंटिलेटर सपोर्ट के बाद भी मरीज की हालत में कोई सुधार नहीं आया। इसके बाद गुरुग्राम स्थित फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एफएमआरआई) के डॉक्टरों ने उसका इलाज कर उसे एक नया जीवन दिया।
मरीज को सिलीगुड़ी से एफएमआरआई ले जाया गया, जहां उसे वेनो-वेनस एक्सट्राकोरपॉरियल मेंबरेन ऑक्सीजिनेशन (ईसीएमओ) पर रखा गया, जिससे उसके फेफड़ों को सपोर्ट मिल सके। डॉक्टर संदीप दीवान ने अपनी टीम के साथ मिलकर मरीज का सफलतापूर्वक इलाज किया।
ईसीएमओ का इलाज उन मरीजों के लिए होता है, जिनके फेफड़े और दिल काम करना बंद कर देते हैं। ऐसे मरीजों को वेंटिलेटर पर रखने का कोई फायदा नहीं होता है इसलिए उनपर ये इलाज किया जाता है। ईसीएमओ एक मशीन है, जो आर्टिफिशियल फेफड़े और दिल की तरह काम करती है।
एफएमआरआई के क्रिटिकल केयर मेडिसिन और ईसीएमओ के निदेशक और हेड, डॉक्टर संदीप दीवान ने इस केस के बारे में बात करते हुए कहा कि, “मरीज को अस्पताल में बहुत ही नाजुक हालत में भर्ती किया गया था। गंभीर निमोनिया और एआरडीएस के कारण मरीज के फेफड़े पूरी तरह से डैमेज हो चुके थे और शरीर को बिल्कुल भी सपोर्ट नहीं कर रहे थे। वेंटिलेटर सपोर्ट के बाद भी वह सांस नहीं ले पा रहा था। उसकी नाजुक हालत को देखते हुए उसे वेनो-वेनस ईसीएमओ पर रखा गया, जिससे उसके फेफड़ों को सपोर्ट मिल सके। मरीज की हालत गंभीर होने के कारण उसे 7-10 दिन तक आईसीयू में रखा गया।”
डॉक्टर संदीप ने आगे बताया कि, “ईसीएमओ ट्रीटमेंट आमतौर पर स्वाइन फ्लू (एच1एन1), ट्रॉमा, हार्ट अटैक या हृदय रोगों और ड्रग ओवरडोज वाले मरीजों पर किया जाता है। मोबाइल ईसीएमओ में 5 लोगों की एक टीम एफएमआरआई से मरीज के गांव/शहर के आईसीयू में जाती है और मरीज को ईसीएमओ पर रखती है। मरीज को जितनी जल्दी ये सुविधा मिल जाती है, उसके बचने की संभावना भी उतनी ही ज्यादा होती है।”